सैकड़ों पेड़ लगाए और 76 बार रक्तदान करके समाज के लिए नजीर पेश की 

मानवसेवा, इंसानियत, संवेदना, मुहब्बत जिसके दिल में कूट-कूटकर भरी हो उसका जीवन झोपड़ी में भी आनंदमय होता है। आज आपके सम्मुख एक ऐसे शख्स का अफसाना लिख रहा हूं जिसने अपना जीवन समाज के गरीब, दलित व आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर और उपेक्षित लोगों के जीवन में आनंद का नवसंचार करने में तन-मन से लगा दिया।

वह शख्स कोई और नहीं बल्कि बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर मुख्यालय से 55 किलोमीटर सुदूर पश्चिमी दियारा से चर्चित गांव चांदकेवारी के रहनेवाले 48 वर्षीय फूलदेव पटेल हैं । सैकड़ों पेड़ लगाए और 76 बार रक्तदान करके समाज के लिए नजीर पेश कीफूलदेव पटेल ने लोगों के जीवन को बचाने के लिए सूरत से लेकर मुजफ्फरपुर तक के ब्लड बैंक में उम्र से अधिक बार रक्तदान करके समाज के लिए मिसाल कायम किया है।  पहली बार 12 दिसम्बर 1996 को एक मजदूर की जान बचाने के लिए ब्लड दान किया था।

सैकड़ों पेड़ लगाए और 76 बार रक्तदान करके समाज के लिए नजीर पेश की

गांव की सामाजिक पृष्ठभूमि 

तीन दशक पहले यह इलाका अपराधियों की शरणस्थली था। कई जिले के अपराधी इस दियारा इलाके में तांडव मचाते थे। सन 2000 के बाद इस इलाके में हिम्मत जुटाकर कुछ साथियों ने गैर-सरकारी संस्था मानवाधिकार संगठन, मिशन आई इंटरनेशनल सर्विस के बैनर तले कड़ाके की ठंड में गरीबों को गर्म कपड़े दान किए।  इस अभियान का नाम था- ‘वस्त्रदान महादान’।  इस अभियान में फूलदेव बिलकुल नए आये थे।  इसके पहले रोजी-रोजगार के सिलसिले में सूरत रहते थे।

सैकड़ों पेड़ लगाए और 76 बार रक्तदान करके समाज के लिए नजीर पेश की

इस टीम का नेतृत्व संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार संतोष सारंग कर रहे थे। इस टीम में पंकज सिंह, अजय सिंह, विनोद जयसवाल, सकलदेव दास समेत दर्जनों ग्रामवासियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह पहली बार रामलीलागाछी मंदिर परिसर में हुआ। वस्त्रदान को लेकर पूरे इलाके में मिशन आई की चर्चा हुई। यहां का सामाजिक हालात उतने अच्छे नहीं थे। जातिपांति, धर्मवाद, सम्प्रदायवाद, कुरीतियां, कुप्रथाएं, जादू-टोना आदि में समाज जकड़ा हुआ था।

अशिक्षा और गरीबी बीमारी की तरह थी। संस्था ने पहली बार समग्र ग्राम विकास योजना के तहत बाल शिक्षा केंद्र की स्थापना की।  जहां गरीब किसान मजदूर के बच्चे आकर अक्षर ज्ञान प्राप्त करते थे। केंद्र में बतौर गुरुजी के रूप में फूलदेव पटेल लोकप्रिय हो गए। इस अभियान को आसपास के ग्रामीणों ने खूब सराहा और दान स्वरूप कॉपी, कलम, मनोहरपोथी आदि खरदने के लिए पैसे दिए। 

क्षेत्र में सामाजिक पहल  

यह केंद्र बालाश्रम के रूप में लगभग 5 साल तक चला।  इस केंद्र में रत्नेश कुमार(शिक्षक ) का सपोर्ट मिलता था।  आसपास की शिक्षित लड़कियां और फूलदेव पटेल समेत टीम के सभी सदस्यों ने पैकेट मनी बचाकर बालाश्रम का सफल संचालन  किया। यह केंद्र पंकज सिंह की खाली जमीन में चलता था। केंद्र पैसे के अभाव में ठप पड़ गया। इस दरम्यान संस्था के अध्यक्ष ने अप्पन समाचार की शुरुआत की जिसमें फूलदेव पटेल सक्रिय रूप से जुटे रहें। चांदकेवारी को संस्था की  प्रयोगशाला कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

डिजिटल लाइब्रेरी व कंप्यूटर सेंटर  

जैविक खाद से लेकर जैविक खेती और फिर सरकार की योजनाओं को गांव तक पहुंचाने व किसानों को जागरूक करने के लिए किसान क्लब और किसान लाइब्रेरी सह सूचना केंद्र का श्री गणेश विनोवा भावे के निजी सचिव बालविजय भाई ने किया। संचालन में फूलदेव पटेल की अहम भूमिका रही। बताते चलूं इस इलाके में अधिकारी तक आने से कतराते थे। किसान साथी क्लब के कार्यों ने उन्हें लगातार आने को विवश किया।

क्लब के अध्यक्ष के रूप में फूलदेव पटेल की पहचान बन गई थी। यहां बिना रिश्वत के केसीसी ऋण नहीं मिलता था। वहीं क्लब के प्रयास ने बैंक के साथ बैठक कर आसान बना दिया।  यह ऐसा गांव है जहां अप्पन समाचार नाम से चर्चित सबसे अधिक हुआ। देश दुनिया के तमाम बड़े चैनल व अख़बार ने स्टोरी कवर किया। आज भी फूलदेव पटेल के दरवाजे पर डिजिटल लाइब्रेरी व कंप्यूटर सेंटर संचालित हो रहा है। लेकिन इससे आमदनी नदारद है ।

सैकड़ों पेड़ लगाए और 76 बार रक्तदान करके समाज के लिए नजीर पेश की

अप्पन समाचार के लिए प्रयास 

अलजजीरा, डिस्कवरी चैनल से लेकर जर्मन टीवी तक ने गांव में हो रहे प्रयोग पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म तक बनाई। यह ग्रामीण महिलाओं का सामुदायिक चैनल है जो संसाधन के अभाव में मंद पड़ा है।  हाल ही में चरखा संस्था के सहयोग से ग्रामीण लड़कियों को डिजिटल टूल्स के जरिये जन-पत्रकारिता सिखलाने के लिए दरवाजे पर केंद्र बनाया गया है।

आलेख और स्टोरी लेखन 

कोरोना के समय फूलदेव पटेल ने चरखा राइटर समूह से जुड़कर आलेख और स्टोरी लिखना सीखा। आज उनके दर्जनों आलेख देश के विभिन्न अख़बारों और वेबपोर्टल पर प्रकाशित हो चुके हैं । उस समय मेरे साथ 10 ग्रामीण युवा जुड़ें। कई युवाओं ने लिखना छोड़ दिया। जबकि सभी फूलदेव पटेल से अधिक पढ़े-लिखे थे। ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ वाली कहावत चरितार्थ हुआ और आज एक अच्छे ग्रामीण लेखक के रूप में भी अपनी जगह बनाई है। बस एक ही बात इस व्यक्ति में दिखी, जहां जैसी समस्या आई वैसे अपने को ढ़ाल लिया।  किसी एक विषय पर टिक कर काम नहीं किया है।

तीन माह पर रक्तदान दिनचर्या

खैर, जो भी लोग आलोचना करें। आज भी इस क्षेत्र में कोई भी समस्या लेकर लोग फूलदेव पटेल के दरवाजे आ जाये उसकी मदद के लिए तत्परता देखते बनती है। नेता टाइप लोग फूलदेव की आलोचना का मौका नहीं छोड़ते। बावजूद फूलदेव के अंदर नयी ऊर्जा का स्वतः संचार हो जाता है।

अभी अनेक सामाजिक कार्यों में प्रमुखतः पेड़ लगाना और ब्लड दान करना व्यक्ति की दिनचर्या है। हरेक शुभ अवसरों पर पेड़ लगाना और तीन माह पर रक्तदान करना।  इस इलाके का इकलौता व्यक्ति है जो उम्र से अधिक ब्लड दान कर दिया। बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने विश्व रक्तदाता दिवस के दिन स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इसके पहले भी कई छोटे स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

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शुभ अवसरों पर पेड़ लगाना और चंदे इकठ्ठा करना 

सरकारी स्कूल, अस्पताल, थाना, प्रखण्ड व जन्मदिवस, शादी, श्राद्धकर्म के अवसर पर आम, कदम, जामुन,आंवला, अमरुद, सागवान, महोगनी, कटहल, गोल्ड मोहर, पीपल,  बरगद,  गुलर इत्यादि पौधे लोगों को मुफ्त दान करना नित्य प्रतिदिन का काम है। सबसे बड़ा सवाल है कि इतना सबकुछ करने के लिए फंड कहा से आता है? जिला और ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों का वैचारिक और आर्थिक सपोर्ट निरंतर मिलता रहता है।  कभी कभार नहीं मिलने की स्थिति में गांव से चंदा-चिट्ठा करने में कोई शर्म नहीं।

घर की आर्थिक स्थिति 

शुरूआती दौर में मां द्रौपदी देवी गरीबी का हवाला देकर समाजसेवा बंद करने की नसीहत देती थी। पत्नी व तीनों बेटों को समझाना काफी मुश्किल काम था।  लेकिन फूलदेव ने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। आज पूरा परिवार नेक कार्य से खुश है। खुद की रोजी रोटी के लिए गोशाला और खेतीबारी जीविका का साधन है। परिवार में किसी सदस्य की तबीयत ख़राब होने की स्थिति में सरकारी अस्पताल और मेडिकल  ही सहारा है। कम संसाधन और आर्थिक तंगी के बीच समाजसेवा का सनक ऐसे सवार है कि कोई संस्था या व्यक्ति बुला दें, साइकिल से निस्वार्थ भाव से उसके घर हाजिर।

पंचायत चुनाव में लगातार हार का सामना 

हैरान करनेवाली बात है कि इतना समाजसेवा करने के बावजूद पंचायत चुनाव में सरपंच पद पर लगातार शिकस्त मिल रही है। बिना जीते आए दिन लोगों के आपसी मनमुटाव एवं  झगड़ें-झंझटों की पंचायती करने की चाह  बनी  रहती है। आज समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध, अंबेडकर एवं गांधी के महान विचारों को अपनाकर जीवनयापन के साथ रक्तदान और वातावरण की शुचिता बनाये रखने के लिए अनवरत काम करने की अद्भुत चाहत दिखती है।


पारिवारिक  पृष्ठभूमि 

नाम : फूलदेव पटेल,  पिता : स्व. रामजी पटेल (चालक )

माता : द्रोपदी देवी,  संगिनी : इंदु देवी 

उम्र : 48 

परिवार के सदस्य : दो भाई, एक बहन, तीन पुत्र 

पेशा : पशुपालन, किसानी 

सोशल लाइफ : समाजसेवा, लेखन, पर्यावरण संरक्षण कार्य आदि।

Contact : email : phooldeopatel@gmail.com, Mobile : 9386353371

नोट : यह कहानी मेरे साथ किए गए कार्यों का संक्षिप्त ब्यौरा है। 


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