हिंदी व्याकरण वर्ण-परिचय

हिंदी व्याकरण का सबसे प्रथम अध्याय हिंदी व्याकरण वर्ण-परिचय होता है। यह आलेख सभी विद्यार्थियों के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। भाषा संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से बनी है। जिसका अर्थ होता है बोलना और सुनना । भाषा की सार्थक इकाई वाक्य है। वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य है। उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध है। पदबंध से छोटी इकाई पद (शब्द) है। पद से छोटी इकाई अक्षर और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण है।  जैसे:- क्, ख्, ग्, घ्, ड्., अ, आ, इ, ई……आदि।

हिंदी व्याकरण वर्ण-परिचय

 

परिभाषा: भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते हैं।

वर्ण वह मूल ध्वनि है जो किसी भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है और जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता। वर्ण शब्दों और वाक्यों का निर्माण करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। संस्कृत और हिंदी भाषा में वर्णों का विशेष महत्व है।

उच्चारण के आधार पर वर्ण 45 है। (10 स्वर और 35 व्यंजन है।)

लेखन के आधार पर वर्ण 52 है। (13 स्वर, 35 व्यंजन, 4 संयुक्त व्यंजन)

व्यवहारिक दृष्टि से 11 स्वर और 33 व्यंजन माने गए हैं।

जैसे- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ (अं, अः)

अं, अः को अयोगवाह भी कहते हैं।  हिंदी व्याकरण वर्ण-परिचय में

वर्ण के भेद:

वर्णों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. स्वर (Vowels)

  2. व्यंजन (Consonants)

स्वर (Vowels):

स्वरों को बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के उच्चारित किया जा सकता है। हिंदी में 11 स्वर माने जाते हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ,

स्वर के भेदों को उनके उच्चारण के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। संस्कृत भाषा में स्वरों को सामान्यतः निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

1. ह्रस्व स्वर (Short Vowels): अ (a) इ (i) उ (u) ऋ (ṛ) ऌ (ḷ)

2. दीर्घ स्वर (Long Vowels): आ (ā) ई (ī) ऊ (ū) ॠ (ṝ) ॡ (ḹ)

3.गुण स्वर (Diphthongs):- ए (e) ऐ (ai) ओ (o) औ (au)

उच्चारण का आधार:

1. ह्रस्व स्वर: इन स्वरों का उच्चारण संक्षिप्त और तीव्र होता है। जैसे, “अ” का उच्चारण करने में बहुत कम समय लगता है।

2. दीर्घ स्वर: इनका उच्चारण ह्रस्व स्वरों की तुलना में अधिक समय तक किया जाता है। जैसे, “आ” का उच्चारण “अ” की तुलना में दुगुने समय तक किया जाता है।

3. गुण स्वर:- ये स्वर संयुक्त स्वरों के रूप में जाने जाते हैं। इनमें दो स्वरों का मिलन होता है। जैसे, “ए” में “अ” और “इ” का मिश्रण होता है।

इन भेदों के माध्यम से स्वर के उच्चारण और उनके समय के आधार पर अंतर किया जाता है। उच्चारण के दौरान सही मात्रा का ध्यान रखना आवश्यक होता है, जिससे शुद्धता और अर्थपूर्णता बनी रहती है।

व्यंजन (Consonants):

व्यंजनों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है। हिंदी व्याकरण वर्ण-परिचय में 33 व्यंजन माने जाते हैं:

स्पर्श व्यंजन

स्पर्श व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनके उच्चारण के समय मुख के किसी न किसी भाग का स्पर्श होता है। हिंदी भाषा में 25 स्पर्श व्यंजन होते हैं। इन्हें उच्चारण स्थान के आधार पर पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक वर्ग में पाँच- पाँच व्यंजन होते हैं।

स्पर्श व्यंजनों के पाँच वर्ग:

  1. कंठ्य (Guttural):
    • क, ख, ग, घ, ङ
    • इनका उच्चारण कंठ से होता है।
  2. तालव्य (Palatal):
    • च, छ, ज, झ, ञ
    • इनका उच्चारण तालु (मुँह के ऊपरी हिस्से) से होता है।
  3. मूर्धन्य (Retroflex):
    • ट, ठ, ड, ढ, ण
    • इनका उच्चारण मूर्धा (जीभ की नोक को ऊपर की ओर मोड़कर) से होता है।
  4. दन्त्य (Dental):
    • त, थ, द, ध, न
    • इनका उच्चारण दाँतों से होता है।
  5. ओष्ठ्य (Labial):
    • प, फ, ब, भ, म
    • इनका उच्चारण होंठों से होता है।

क, ख, ग, घ, ङ    कवर्ग     कंठ

च, छ, ज, झ, ञ    चवर्ग     तालु

ट, ठ, ड, ढ, ण     टवर्ग     मूर्धा

त, थ, द, ध, न     तवर्ग     दन्त

प, फ, ब, भ, म    पवर्ग    ओष्ठ

अन्तस्थ: य, र, ल, व

उष्म: श, ष, स, ह

संयुक्त व्यंजन : क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

 उच्चारण स्थान 

‘अकह’ विसर्ग कंठ राम

‘इचयश’ है तालु राम

ऋटष को जानो मूर्द्धा जी

लृतस’ पुकारो दंत जी 

‘उप’ आते हैं ओष्ठ में 

‘ए, ऐ’ आवे कंठ-तालु

ओ, औ को जानो कंठ-ओष्ठ में

व आता है दंतोष्ठ में

जिह्वा रखो प्रकोष्ठ में

घोष और अघोष वर्ण

नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वर-तंत्रिकाएँ झंकृत हो उसक घोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक वर्ग का 3रा, 4था और 5वां वर्ण घोष कहलाता है। जैसे- ग, घ, ड., ज, झ आदि। जो व्यंजनवर्णों की झंकृति न हो उसक अघोष (केवल श्वास का) । प्रत्येक वर्ग का 1ला और 2रा वर्ण अघोष कहलाता है। जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ आदि।

वायु प्रक्षेप के अनुसार: अल्पप्राण और महाप्राण

  • जिनके उच्चारण में श्वास पूर्व से अल्प मात्रा में निकले तथा हकार जैसी ध्वनि नहीं निकलती उसे अल्पप्राण कहते हैं। जैसे- क, ग, ड.
  • प्रत्येक वर्ग का 1ला, 3रा एंव 5वां अल्पप्राण कहलाता है।
  • अंतःस्थ: (य,र,ल,व) अल्पप्राण
  • उच्चारण में श्वास-वायु अधिक मात्रा में निकले तथा हकार जैसी ध्वनि भी निकले उसे महाप्राण कहता हूँ। ख, घ आदि। (2रा, 4था)
  • ऊष्म व्यंजन: श, ष, स

अनुनासिक, अनुस्वार, निरनुनासिक और विसर्ग

  • अनुनासिक ( ँ )ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है। उच्चारण में लघुता रहती है। जैसे- गाँव, आँगन, मुँह आदि।
  • अनुस्वार ( ं) यह स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है। जैसेः- कुंभ, गंगा, अंगूर आदि।
  • निरनुनासिक: केवल मुँह से बोले जाने वाले सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं। जैसे- इधर, उधर, अपना आदि।
  • विसर्ग (:) अनुस्वार की तरह विसर्ग स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ह की तरह होता है। जैसे- मनःकामना, अतः आदि।

पंचमाक्षर का प्रयोग

स्पर्श व्यंजन के सभी व्यंजनों का अंतिम वर्ण पंचमाक्षर कहलाता है।

कवर्ग- ड्., चवर्ग- ´ञ, टवर्ग- ण्, तवर्ग- न्, पवर्ग- म्

जैसेः – सन्धि-  संधि

दम्भ- दंभ,  अड्.ग- अंग

खण्ड- खंड,  चञचल- चंचल

 

 

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