Anjali Kumari
एक समय की बात है। रामपुर नामक गांव में बहुत सारे बच्चे संध्या बेला में खेल रहे थे। ठंडी की छुट्टी थी। सभी ने सोचा कि चिड़ियाघर कैसा होता है? वास्तव में चिड़िया होती है। खेल के मैदान के किनारे से होते हुए श्याम क दादाजी टहल रहे थे। उन्होंने बच्चों की बात सुनी और कहा, ‘‘तुमलोग कहां जाने की बात कर रहे हो?’’ बच्चों ने उल्लाभरे स्वर में कहा दादाजी आप भी चलिए ना। हां, हां मैं भी तुम सब के साथ चिड़ियाघर चलूंगा।
चिड़िया घर पहुंचते ही खुशी का ठिकाना न रहा
काफी ठंड पड़ रही है इसलिए सभी बच्चे गर्म कपड़े जरूर ले लेना। दोपहर के लिए कुछ नास्ता मां से बनवा लेना। ठंढ बहुत पड़ रही है। सभी बच्चे एवं दादाजी सुबह की ट्रेन पकड़कर पटना चिड़ियाघर निकल पड़े। चिड़िया घर पहुंचते ही खुशी का ठिकाना न रहा। ठंडी ज्यादा लग रही थी। रोमा, श्यामा, रागिनी सभी बच्चे ठंड से कांप रहे थे। सभी बच्चों ने स्वेटर खरीदे। दस मिनट के बाद ही बच्चों को ठंड से छुटकारा मिला। उसे गर्मी महसूस हुई और चिड़ियाघर देखने की उत्सुकता बढ़ी। रोमा ने कहा दादाजी ऊन कहां से और कैसे बनता है?
सबसे पहले ऊन का उत्पादन चीन में हुआ
दादाजी ने बोला बहुत पुरानी बात है। सबसे पहले ऊन का उत्पादन चीन में हुआ था। चीने के वर्तमान राजा सी-लूंग-ची और रानी हंगी-टी थी। वे लोग बगीचे मे चाय की चुस्किायां ले रहे थे। तभी मलबेरी ट्री से एक छाल चाय में गिरा। रानी ने चाय से छाल निकाला और उसे ध्यान से देखा वह बहुत मजबूत था। राजा-रानी ने सोचा कि इससे कुछ उत्पादन कर सकते हैं और फैक्ट्री में भेजवाया। पता चला कि मलबेरी के छाल से गर्म कपड़े बन सकते हैं। उससे बने गर्म कपड़े तो सभी पहनते थे।
गर्म कपड़े मलबेरी पेड़ की छाल से बने हैं
पर, किसी को भी यह मालूम नहीं था कि गर्म कपड़े मलबेरी पेड़ की छाल से बने हैं। सबलोग उसे पहनते और उसकी प्रशंसा करते। हरेक शहर और देश-विदेश के लोग इसको जानने के प्रयास में लग गएं। कुछ वक्त गुजरने के बाद पता चला और सभी जगह सुंदर टोपी, गलाबंद, स्वेटर, साड़ियां बनने लगे। दादाजी ने बच्चों को बताया कि चीन पहला देश है जो मलबेरी ट्री पर एक छोटा प्राणी रहता है जिसे कैटरपीलर (कमला) जो वस्त्र निर्माण के कार्य में आते हैं।
दादाजी के साथ बच्चों ने चिड़ियाघर का सफर करते हुए विभिन्न प्राणियों के जीवनकाल, महत्व, उपयोग तथा पर्यावरण के संतुलन में उन प्राणियों के संबंध के बारे में बताया। सभी बच्चों ने खेलते-घूमते हुए दादाजी के साथ घर लौटे।
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