छंद कितने प्रकार के होते हैं? छंद के प्रकार और उदाहरण

हिंदी साहित्य में छंद का विशेष महत्व है। छंद काव्य की एक ऐसी विधा है, जिसमें शब्दों की लय और ताल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। छंद को समझने के लिए इसके प्रकारों को जानना आवश्यक है। छंद कितने प्रकार के होते हैं? छंद के प्रकार और उदाहरण :-

छंद कितने प्रकार के होते हैं? छंद के प्रकार और उदाहरण

छंद का परिचय

Table of Contents

छंद कविता का एक शिल्प है, जिसमें शब्दों की मात्राओं और यति-गति का संतुलन होता है। यह काव्य की सुंदरता को बढ़ाता है और पाठक के मन को प्रभावित करता है।

छंद के प्रमुख अंग

  • मात्रा: छंद में मात्राओं का निर्धारण महत्वपूर्ण होता है।
  • यति: छंद में विराम या ठहराव को यति कहते हैं।
  • गति: कविता में लयबद्धता को गति कहते हैं।

 छंद के प्रकार

1. वर्णिक छंद

वर्ण आधारित छंद, जिसमें हर पंक्ति में वर्णों की संख्या समान होती है।

उदाहरण:

रघुकुल रीति सदा चली आई।

प्राण जाए पर वचन न जाई।

2. मात्रिक छंद

मात्रा आधारित छंद, जिसमें मात्राओं का विशेष ध्यान रखा जाता है।

उदाहरण:

चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।

3. गीति छंद

गीतात्मक छंद, जिसमें भाव और लय पर जोर दिया जाता है।

उदाहरण:

ज्योत से ज्योत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो।

4. मुक्तक छंद

यह छंद किसी विशेष नियम का पालन नहीं करता, स्वतंत्र होता है। 

उदाहरण:

आज़ाद परिंदा बन उड़ने दे मुझे।

छंद का महत्व

छंद न केवल कविता को सुंदर बनाते हैं, बल्कि पाठकों के मन में स्थायी छाप छोड़ते हैं। यह कवि की कल्पनाओं को एक अनुशासन में बांधता है और उसकी कृति को प्रभावशाली बनाता है।

छंद कविता की आत्मा है। इसके विभिन्न प्रकार और उदाहरण साहित्य के विद्यार्थियों और कवियों के लिए बेहद उपयोगी हैं। छंद के ज्ञान से न केवल कविता को निखारा जा सकता है, बल्कि इसके माध्यम से साहित्य में एक नई ऊंचाई प्राप्त की जा सकती है।

वर्णिक छंद की परिभाषा और पहचान

वर्णिक छंद की परिभाषा

वर्णिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक पंक्ति (पद) में वर्णों की संख्या समान होती है। इस प्रकार के छंद में मात्राओं का स्थान वर्णों ने ले लिया होता है। वर्णिक छंद में लय और ताल बनाए रखने के लिए पंक्ति के वर्णों की गणना को प्राथमिकता दी जाती है।

वर्णिक छंद की विशेषताएँ

वर्णों की संख्या: प्रत्येक पंक्ति में वर्णों की संख्या समान होती है।

यति: पंक्तियों में निश्चित स्थान पर ठहराव या यति होती है।

गति: वर्णिक छंद में लय बनाए रखने के लिए वर्णों का सही क्रम महत्वपूर्ण है।

गण और चरण: छंद को चरणों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक चरण के वर्णों का समूह निर्धारित होता है।

वर्णिक छंद की पहचान

  • पंक्तियों में वर्णों की संख्या का बराबर होना इसकी प्रमुख पहचान है।
  • इसकी लयबद्धता स्पष्ट होती है।
  • किसी भी पंक्ति में वर्ण कम या अधिक होने पर यह छंद खंडित माना जाता है।
  • यह छंद स्वच्छंदता के बजाय अनुशासन का पालन करता है।

Example 1 (दोहा छंद – वर्णिक छंद का प्रकार):

संरचना: दोहा में प्रत्येक पंक्ति में 24 वर्ण होते हैं, जिन्हें 13-11 के चरणों में बांटा जाता है।

पंक्तियाँ: रघुकुल रीति सदा चली आई।

प्राण जाए पर वचन न जाई।

Example 2 (सोरठा छंद – वर्णिक छंद का प्रकार):

संरचना: सोरठा में प्रत्येक पंक्ति में 24 वर्ण होते हैं, लेकिन चरणों का क्रम 11-thirteen होता है।

पंक्तियाँ:

सिय राम मय सब जग जानी।

करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।

वर्णिक छंद हिंदी काव्य का एक अनुशासनात्मक और लयात्मक रूप है, जो पाठकों को अपनी संतुलित संरचना से प्रभावित करता है। इसका अध्ययन कविता लेखन में निपुणता प्राप्त करने के लिए उपयोगी है।

मात्रिक छंद की परिभाषा, भेद और पहचान

मात्रिक छंद की परिभाषा

मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें कविता की पंक्तियों की रचना मात्राओं के आधार पर होती है। इसमें प्रत्येक पंक्ति की कुल मात्राएँ (लघु और गुरु मात्राओं का योग) समान होती हैं। मात्रिक छंद में यति, गति और छंद के चरणों में मात्राओं का सटीक विन्यास अनिवार्य होता है। 

मात्रिक छंद के भेद

निःश्वेत छन्द को उसकी संरचना और मात्राओं के आधार पर तीन मुख्य भेदों में बाँटा जा सकता हैः

1. सम मात्रिक छंद

प्रत्येक पंक्ति (पद) की मात्राएँ समान होती हैं।”

वदामुक्त हृदयांगल चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।

हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है।

2. विषम मात्रिक छंद

पंक्तियों में मात्राएँ असमान होती हैं, लेकिन चरणों में सामंजस्य होता है।”

जल के भीतर भरा अंबर, अंबर में जलनिधि।

देखत रहे हैं लोचन, लीला दुरभिधि।

3. स्वच्छंद मात्रिक छंद

इसमें मात्राओं की गिनती पर अधिक जोर नहीं होता, किंतु प्रभाव के आधार पर कविता लयबद्ध होगी और भाव का उच्चारण होगा।

उदाहरण:धरती कहे पुकार के, संतान मेरी है।

पर्वत कहे पुकार के, पहचान मेरी है।

मात्रिक छंद की पहचान

मात्रा गणना: प्रत्येक पंक्ति की मात्राओं की गिनति की जाती है। 

लघु मात्रा (.) = 1

गुरु मात्रा (॥) = 2

  • पंक्तियों का संतुलन : सम मात्रिक छंद में सब पंक्तियों की मूल मात्राएँ समान होती हैं।.
  • लय और ताल: मात्राओं की गुणा (छोटी-गुरु) लय ताल की परिभाषा करता है।
  • चरण-भाग: छंद के चरणों में अंश करके देखकर, मात्राओँ का भाव संतुलित किया जाता है।

मात्रिक छंद के उदाहरण

1. सम मात्रिक छंद का उदाहरण

चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम।

हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम।।

2. विषम मात्रिक छंद का उदाहरण

प्यासी धरती फिर से चाहे, बादल बरसे।

हरी-भरी खेतों की खुशबू, नभ में तरसे।

मात्रिक छंद का महत्व

मात्रिक छंद काव्य की सुंदरता और लय को बनाए रखने में सहायक है। यह कवि को अपनी रचना में अनुशासन का पालन करने और पाठकों के लिए एक सुनियोजित प्रस्तुति देने में मदद करता है।

मात्रिक छंद हिंदी काव्य की एक प्राचीन विधा है जो मात्राओं की गणना के आधार पर संरचित होती है। इस अभ्यास को काविता लेखन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है। अगर आप भी मात्रिक छंद लिखने की कोशिश कर रहे हैं तो लय और नियम पर ध्यान दें।

लघु और गुरु: परिभाषा और समझ

लघु और गुरु का परिचय

लघु और गुरु मात्राएँ हिंदी छंद शास्त्र के आधारभूत तत्व हैं। कविता या छंद में प्रत्येक अक्षर की उच्चारण अवधि को “मात्रा” कहते हैं। इन मात्राओं के प्रकार को उनके उच्चारण समय और ध्वनि की लंबाई के आधार पर लघु (।) और गुरु (॥) में बाँटा गया है।

लघु और गुरु की परिभाषा

1. लघु मात्रा (।)

लघु वह मात्रा है जिसका उच्चारण जल्दी और कम समय में होता है।इसे एक मात्रा गिना जाता है।लघु मात्रा सामान्यतः स्वर (अ, इ, उ) से उत्पन्न होती है।अक्षर: अ, इ, उशब्द: जल, नम, मनमात्रा गिनती: “जल” = (ज + ल) = 1 + 1 = 2 लघु मात्राएँH3: 2. गुरु मात्रा (॥)गुरु वह मात्रा है जिसका उच्चारण लंबा और धीमा होता है।इसे दो मात्राएँ गिना जाता है।

गुरु मात्रा सामान्यतः दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ए, ओ) से उत्पन्न होती है।  

यदि कोई अक्षर लघु स्वर के साथ अनुस्वार (ं) या विसर्ग (ः) रखता हो, तो वह भी गुरु माना जाता है।  

उदाहरण:  

अक्षर: आ, ई, ऊ, ए, ओ  

शब्द: काल, दीप, फूल  

मात्रा गिनती: “काल” = (का + ल) = 2 + 2 = four गुरु मात्राएँ

लघु और गुरु की पहचान

1. उच्चारण समय से पहचान

  • यदि अक्षर का उच्चारण कम समय लेता है, तो वह लघु है।
  • यदि उच्चारण अधिक समय लेता है, तो वह गुरु है।

2. स्वरों से पहचान

लघु स्वर: अ, इ, उ

गुरु स्वर: आ, ई, ऊ, ए, ओ, ऐ, औ

3. व्यंजनों के साथ पहचान

लघु उदाहरण: शब्दों में हल्के स्वर जैसे घर, नर, जल।

गुरु उदाहरण: दीर्घ या संयुक्त ध्वनि जैसे काल, फूल, पेड़।

FAQ- छंद शास्त्र 

प्रश्न 1: लघु और गुरु में क्या अंतर है?

उत्तर: लघु: उच्चारण कम समय लेता है, और इसे 1 मात्रा के रूप में गिना जाता है।

  • गुरु: उच्चारण अधिक समय लेता है, और इसे 2 मात्राओं के रूप में गिना जाता है।

प्रश्न 2: कैसे पहचाने कि कोई अक्षर लघु है या गुरु?

उत्तर: लघु स्वरों से बने अक्षर: अ, इ, उ

  • गुरु स्वरों से बने अक्षर: आ, ई, ऊ, ए, ओ
  • दीर्घ स्वरों या अनुस्वार/विसर्ग वाले अक्षर गुरु माने जाते हैं।
  • उदाहरण: “जल” में दोनों वर्ण लघु हैं। “काल” में दोनों वर्ण गुरु हैं।

प्रश्न 3: मात्रिक छंद और वर्णिक छंद में क्या अंतर है?

उत्तर: मात्रिक छंद: इसमें कविता की पंक्तियों की संरचना मात्राओं के आधार पर होती है।

  • वर्णिक छंद: इसमें पंक्तियों की संरचना वर्णों की संख्या के आधार पर होती है।

प्रश्न 4: छंद में लघु और गुरु का क्या महत्व है?

उत्तर: छंद की लय और गति मात्राओं पर आधारित होती है।

  • सही लघु और गुरु मात्राओं से कविता का तालमेल और सुंदरता बनी रहती है।

प्रश्न 5: मात्राओं की गिनती कैसे करें?

उत्तर: लघु स्वर = 1 मात्रा (अ, इ, उ)

  • गुरु स्वर = 2 मात्राएँ (आ, ई, ऊ, ए, ओ)
  • व्यंजनों के साथ स्वर जोड़कर कुल मात्राएँ गिनी जाती हैं।

उदाहरण:

  • जल = ज (1) + ल (1) = 2 मात्राएँ
  • काल = का (2) + ल (2) = 4 मात्राएँ

प्रश्न 6: मात्रिक छंद के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?

उत्तर:

  1. सम मात्रिक छंद: सभी पंक्तियों की मात्राएँ समान होती हैं।
  2. विषम मात्रिक छंद: चरणों की मात्राएँ असमान होती हैं।
  3. स्वच्छंद मात्रिक छंद: इसमें मात्राओं का कोई कड़ा नियम नहीं होता।

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